भोपाल । मप्र में इस बार भाजपा ने प्रदेश की सभी 29 सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाया है। इसके लिए पार्टी पिछले एक साल से लगातार काम कर रही है। भाजपा का दावा है कि हर लोकसभा क्षेत्र में उसकी तैयारियां पूरी हो गई हैं और सभी सीटें जीतने में कोई बाधा नहीं है। लेकिन संघ ने आधा दर्जन सीटों को भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण मानते हुए मोर्चा संभाल लिया है। सूत्रों का कहना है कि  धार, मुरैना समेत 6 सीटों को संघ ने चुनौतीपूर्ण बताया है और 36 अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को मैदान में उतार दिया है।
दरअसल, विधानसभा में मिली बड़ी जीत के बाद भाजपा लोकसभा चुनाव को लेकर उत्साहित है। पार्टी को पूरी उम्मीद है कि वह इस बार के चुनाव में प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों को जीत लेगी। लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मुरैना, धार, राजगढ़ और रतलाम-झाबुआ समेत आधा दर्जन सीटों को इस बार चुनौतीपूर्ण माना है। इन सीटों पर भाजपा की विजय सुनिश्चित करने के लिए संघ ने अपने अनुषांगिक कार्यकर्ताओं को मैदान में उतार दिया है। यह निर्णय संघ के प्रांत और क्षेत्रीय प्रचारकों की भाजपा के संगठन नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद लिया गया है।
गौरतलब है कि भाजपा के लिए आरएसएस के स्वयंसेवक और अनुषांगिक संगठन हमेशा से ही पर्दे के पीछे से मदद करते रहे हैं। संघ अपने अनुषांगिक संगठनों के जरिए भाजपा के एजेंडे को अपरोक्ष रूप से आगे बढ़ाने का काम करता है पर चुनाव के समय प्रबंधन का पूरा काम भाजपा के पास रहता है। ऐसे में संघ के कार्यकर्ता पाश्र्व में रहते हैं। सूत्रों की मानें तो संघ ने शुरुआत से मंडला, छिंदवाड़ा, मुरैना, राजगढ़, धार और रतलाम-झाबुआ को चुनौतीपूर्ण सीटों की श्रेणी में रखा था। शेष सीटों पर उसे अच्छे मार्जिन से जीत की आस है। इन छह सीटों में से पहले चरण में मंडला और छिंदवाड़ा में मतदान हो चुका है। इन सीटों पर मतदान प्रतिशत गिरने से चितिंत आरएसएस ने भाजपा नेताओं के साथ बैठक की थी। इस बैठक में राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शामिल हुए थे। इस बैठक में संघ के अपने तीनों प्रांतों के प्रांत प्रचारकों और क्षेत्रीय प्रचारक भी शामिल थे। बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा की गई।
आरएसएस और भाजपा नेताओं की बैठक में पहले चरण की सीटों पर हुए कम मतदान पर चिंता जाहिर की गई। मंडला में इस बार पिछली बार से सवा पांच प्रतिशत कम मतदान हुआ है। छिंदवाड़ा में पिछली बार से 2.8 प्रतिशत मतदान में कमी आई है। इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में आदिवासी वोट बैंक बहुतायत से है। संघ को मिली जानकारी के मुताबिक इस वर्ग का मतदाता भी पिछली बार की तरह इस बार मतदान करने के लिए नहीं निकला है। इसके बाद संघ रतलाम झाबुआ और मुरैना समेत उन चार सीटों पर सक्रिय हो गया है जो उसकी नजर में चुनौतीपूर्ण है। रतलाम-झाबुआ सीट पर पिछली बार भाजपा के गुमान सिंह डामोर चुनाव जीते थे। पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटकर मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता नागर को टिकट दिया है। आदिवासी बाहुल्य इस अंचल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दशकों से सक्रिय है और उसकी अनुषांगिक संस्था वनवासी कल्याण परिषद और विद्या भारती ने काफी काम किया है। संघ ने इस सीट पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इस बार भी कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे कांतिलाल भूरिया को प्रत्याशी बनाया है। मुरैना में पिछले तीन चुनाव से लगातार भाजपा को विजय मिल रही है पर हर बार यहां स्थिति चुनौतीपूर्ण रहती है। इस सीट पर भाजपा को बसपा से भी लाभ मिलता है। बहुजन समाज पार्टी का वहां खासा बोट बैंक है और यह ज्यादा नुकसान कांग्रेस को पहुंचाता है। आरएसएस इस क्षेत्र के अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के मतदाताओं को अपने पक्ष में मोडने का प्रयास कर रही है, हालांकि अंवा वर्ग का अधिकांश बोट यहां बसपा को मिलता रहा है। नरेंद्र सिंह तोमर यहां से दो बार चुनाव जीत चुके हैं। उनके प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो जाने के बाद भाजपा ने शिवमंगल सिंह तोमर को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व में भाजपा से विधायक रह चुके सत्यपाल सिंह सिकरवार को टिकट दिया है। यहां चुनावी रण बेहद रोचक बना हुआ है। इसी तरह राजगढ़ सीट पर इस बार संघ की नजर है। पिछले दो चुनाव से यहां भाजपा जीत रही है पर इस बार कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारकर रण को रोचक बना दिया है। दिग्विजय इस क्षेत्र से दो बार सांसद रह चुके हैं। यह उनका गृह क्षेत्र है। संघ को लग रहा है कि दिग्विजय को स्थानीयता का लाभ मिल सकता है लिहाजा वह इस क्षेत्र पर भी पैनी नजर रख रहा है।